मन आयोधन सतत रहे, राम नाम है मूलो
काव्य पुस्तक स्रोत : ओजावली
मन आयोधन सतत रहे, राम नाम है मूलो ।
प्राण तजे हंसा कभी, मिले मूल में मूलो ॥1॥
आयत्ति हूँ राम का, राम नाम संसारो ।
राम आयुत मुझमें हुए, लगे राम व्यवहारो ॥2॥
राम नाम सम्बंध बड़ा, इससे बड़ा न को ।
प्राप्ति आप्ति राम से, जो जाने वो रो॥3॥
हर रूपम राम रोपित हैं, राम नाम भंडारो।
राम नाम की चादरी, मन अंतस में डारो ॥4॥
आदि रूप से राम बसे, सतत रूप प्रवाहो ।
आयाचित हैं राम से, राम संग निर्वाहो ॥5॥
लगे आर श्री राम की, मन तन सुख में हो ।
भजे राम आयस बने, हर दुख निरूपण हो ॥6॥
राम बसे मन में सदा, शिष्ट वाणी हो जो ।
शिष्ट शब्द सिद्धी से, जो बोए उग वो ॥7॥
मन पावन मन रूप है, मन ही रूपम साजो ।
मन प्रहरी श्री राम हैं, मिल जाऐ टूटे काजो ॥8॥
मन आरण्य सभ्य है, मन आयत संसारो ।
मन आयत्त संसार है, राम आयुत ही सारो ॥9॥
मन धतूरा मन राम है, मन उपविष की खानो ।
मन चेतन में राम बसे, मन अवचेतन ध्यानो ॥10॥
मन बंगला मन महल है, मन घर है उपशालो ।
मन उपाधी शांत है, मन सुख दुख जंजालो ॥11॥
अरहट रूपी मन बसे, निकले राम जल रूपो ।
जो नर इसको पीवते, प्राप्त शिष्ट स्वरूपो ॥12॥
अरविंद तो कीचड़ खिले, कीचड़ खिले नही को ।
ये खिलना किस काम का, साथ रहे सो रो ॥13॥
मन खिले तो जग खिले, नही हो कभी अरीतो ।
मन रोये तो जग हंसे, नही मिलती कोई प्रीतो ॥14॥
विपत्ति रूप तन है यदि, मारग सारग खो ।
मन दुविधा मन खेत है, मनरोपण नही को ॥15॥
मन पावन मन राम है, मन जीवन अंधकारो ।
मन दुख सुख अवीरा, मन नदी नाव पतवारो ॥16॥
श्री राम अवघट मिले, मन अंतस का गीतो ।
माया मोह से मन हटे, हटजा मन अवगीतो ॥17॥
समीर बाग में फल उगे, नही दिखता फल में बागो ।
नयन तीसरा खुल ऊठे, वैसेराम दिखे मन भागो ॥18॥
अवगत राम मन रूप है, अवगत राम समीरो ।
अवगत राम धन रूप है, अवगत राम अवीरो ॥19॥
मन रूपम मन तेज है, मन रूपम अंधकारो ।
मन गम्य संग राम हैं, मन रूपम अहंकारो ॥20॥
मन रूपक मन तेज है, मन रूपम है धारो ।
मन रूपम मन श्याम हैं, मन रूपम है सारो ॥21॥
मन रूपम मन आश है, मन है जग का वासो ।
मन मेरे संग राम हैं, मन रूपम जल प्यासो ॥22॥
मन तन सुख मन राम है, मन जन जन के वीरो ।
मन तन दुख मन श्याम है, मन घन मन समीरो ॥23॥
मन अलीन अलील है, मन अल्पेतर हारो ।
मन गुणक मन भाग है, मन अलिक व्यवहारो ॥24॥
मन रचक और मन रचन, मन रद मन आजीवो ।
कीचड़ भाव मन में रहे,नही खिलता कोई राजीवो ॥25॥
मन वाचा मन वाचस्पति, मन वाजी मन सूरो ।
मन में वाट श्री राम का, राम नही तन दूरो ॥26॥
जीवन दुर्लभ होय तो, राम नाम की टेको ।
जीवन सुगम बन जाये तो, सदा राम में देखो ॥27॥
मन मेरा मन रूप है, मन मेरा मन तीरो ।
हल्की बातें साथ नहीं, तिनका कष्ट समीरो ॥28॥
रचयिता : हरिओम शर्मा, CFA
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