Sunday, November 1, 2020



पेज समर्पित हर जगवासी, हिंदी प्रेमी और हिन्द वीर

काव्य - रक्त बह रहा शिरा में, न होने दें काव्य शीत

काव्य पल्लवी विकसित होगी, खोज रहा हूँ ऐसे मीत

काव्य पथ को नमन मेरा, शुद्ध हिंदी काव्य मेरा गीत 

रचयिता : हरिओम शर्मा, CFA

काव्य पुस्तक : हम सब लकड़हारे हैं 

प्रकाशक : डायमंड बुक्स 

वर्ष : 2015 

Friday, November 16, 2018


हरिमन राम ही धाम है, परमपुरुष करतारो l
हरिमन राम ही धाम है, परमपुरुष करतारो l
दया दृष्टि राम की. श्री राम नाम उच्चारो ll1ll
हरिमन नाम राम का, अंतस आत्म ध्यानो l
चरण शरण श्रीराम की, राम नाम शुभगानो ll2ll
श्रीराम ही मंगल धाम, रोम रोम राम नामो l
राम श्री श्री राम निहित, हरिमन मंगलचारो ll3ll
हरिमन राम गीत सदा, इस जीवन की धारो l
महा मांगलिक नाम यह, यह जीवन उभारो ll4ll
हरिमन सेवा शान्तनु, हरिमन लील पठाओ l
हरिमन बोले राम राम, राम राम रम जाओ ll5ll
हरिमन राम जगदीश हैं, श्रीराम ब्रह्म जानो l
श्री राम ही परमगुरु, पाओ नित उत्तम ज्ञानो ll6ll
हरिमन शरण राम की, श्रीहरी राम विचारो l
दीन हीन मुझे जानकार, भवसागर कर पारो ll7ll
हरिमन जन्म मरण से, कोई विरला ही पारो l
दया करो श्री राम जी, मैं स्वान हूँ तेरे दवारो ll8ll
राम नाम शिव ज्योत हैं, शिव नाम भण्डारो l
राम ही शिव शिव राम हैं, हरिमन अंतर नारो ll9ll
अगम अनाहद नील गगन, श्रीराम मन वासो l
बाहर अंतस रमा हुआ, बहु अचम्भी है पासो ll10ll
राम श्री श्री राम सदा, पूर्ण ब्रह्म मन लेखो l
राम राम मन तार नदा, नित सुमिरन में देखो ll11ll
एक राम है बहु राम हैं, नहीं मेरा मन जानो l
हरिमन तो इतना ही जाने, राम मेरा है ज्ञानो ll12ll
अमर अनाहद राम है, निर्भय राम व्यवहारो l
काया माया राम निहित, रूप भिन्न संस्कारो ll13ll
हरिमन मन तेज राम है, राम बिना मन हारो l
थोड़े समय का जीवन हार, राम बने तब थारो ll14ll

रचयिता : हरिओम शर्मा, CFA 
पिक्चर स्रोत : गूगल सर्च आभार सहित

Wednesday, October 31, 2018

संघर्ष यदि हो नित जीवन में

संघर्ष यदि हो नित जीवन में,
नव अनुभव ले आता है l
उस अनुभव से सुख सफल,
अतुल्य आनंद दे जाता है ll

किसान संघर्ष पथ तुम्हारा,
यदि बन जाए जीवन में l
पड़ जाए सूखा जाए फसल,
नवाशा बीज बो जाता है ll

सुख दुःख तो है आना जाना,
दुःख बनता है नव चेतन l
कोई दुःख में जो काम न आये,
उत्साह नव दे जाता है ll

सुख दुःख तो यहां क्षणिक उदय,
जैसे छाया धूप सजै l
सुख की नित प्रत्याशा का,
शूल निराशा खिल जाता है ll

वाणी के महाकटु जहर से,
प्रभाव नहीं कहीं अंतस पड़ता l
क्षमाभाव वह विकसित करता,
बहुत ऊपर उठ जाता है ll

विष मिले उसको भी लेलो,
शूल मिले उसको भी लेलो l
कुछ संचय करने के बाद,
यह स्वयं वापस हो जाता है ll

उदेति सविता ताम्र ताम्र,
जब भाव ये अंतस आता है 
हरिमन देख शिव गगन में,
विवेक जनित कर जाता है ll

- हरिओम शर्मा, CFA

Sunday, September 9, 2018


मन आयोधन सतत रहे, राम नाम है मूलो

काव्य पुस्तक स्रोत : ओजावली 

मन आयोधन सतत रहे, राम नाम है मूलो ।
प्राण तजे हंसा कभी, मिले मूल में मूलो ॥1॥ 

आयत्ति हूँ राम का, राम नाम संसारो । 
राम आयुत मुझमें हुए, लगे राम व्यवहारो ॥2॥

राम नाम सम्बंध बड़ा, इससे बड़ा न को । 
प्राप्ति आप्ति राम से, जो जाने वो रो॥3॥ 

हर रूपम राम रोपित हैं, राम नाम भंडारो। 
राम नाम की चादरी, मन अंतस में डारो ॥4॥

आदि रूप से राम बसे, सतत रूप प्रवाहो । 
आयाचित हैं राम से, राम संग निर्वाहो ॥5॥

लगे आर श्री राम की, मन तन सुख में हो ।
भजे राम आयस बने, हर दुख निरूपण हो ॥6॥

राम बसे मन में सदा, शिष्ट वाणी हो जो । 
शिष्ट शब्द सिद्धी से, जो बोए उग वो ॥7॥

मन पावन मन रूप है, मन ही रूपम साजो । 
मन प्रहरी श्री राम हैं, मिल जाऐ टूटे काजो ॥8॥

मन आरण्य सभ्य है, मन आयत संसारो । 
मन आयत्त संसार है, राम आयुत ही सारो ॥9॥

मन धतूरा मन राम है, मन उपविष की खानो । 
मन चेतन में राम बसे, मन अवचेतन ध्यानो ॥10॥

मन बंगला मन महल है, मन घर है उपशालो । 
मन उपाधी शांत है, मन सुख दुख जंजालो ॥11॥ 

अरहट रूपी मन बसे, निकले राम जल रूपो । 
जो नर इसको पीवते, प्राप्त शिष्ट स्वरूपो ॥12॥ 

अरविंद तो कीचड़ खिले, कीचड़ खिले नही को । 
ये खिलना किस काम का, साथ रहे सो रो ॥13॥ 

मन खिले तो जग खिले, नही हो कभी अरीतो । 
मन रोये तो जग हंसे, नही मिलती कोई प्रीतो ॥14॥

विपत्ति रूप तन है यदि, मारग सारग खो ।
मन दुविधा मन खेत है, मनरोपण नही को ॥15॥ 

मन पावन मन राम है, मन जीवन अंधकारो ।
मन दुख सुख अवीरा, मन नदी नाव पतवारो ॥16॥

श्री राम अवघट मिले, मन अंतस का गीतो ।
माया मोह से मन हटे, हटजा मन अवगीतो ॥17॥

समीर बाग में फल उगे, नही दिखता फल में बागो ।
नयन तीसरा खुल ऊठे, वैसेराम दिखे मन भागो ॥18॥

अवगत राम मन रूप है, अवगत राम समीरो ।
अवगत राम धन रूप है, अवगत राम अवीरो ॥19॥

मन रूपम मन तेज है, मन रूपम अंधकारो ।
मन गम्य संग राम हैं, मन रूपम अहंकारो ॥20॥

मन रूपक मन तेज है, मन रूपम है धारो ।
मन रूपम मन श्याम हैं, मन रूपम है सारो ॥21॥

मन रूपम मन आश है, मन है जग का वासो ।
मन मेरे संग राम हैं, मन रूपम जल प्यासो ॥22॥

मन तन सुख मन राम है, मन जन जन के वीरो ।
मन तन दुख मन श्याम है, मन घन मन समीरो ॥23॥

मन अलीन अलील है, मन अल्पेतर हारो ।
मन गुणक मन भाग है, मन अलिक व्यवहारो ॥24॥

मन रचक और मन रचन, मन रद मन आजीवो । 
कीचड़ भाव मन में रहे,नही खिलता कोई राजीवो ॥25॥

मन वाचा मन वाचस्पति, मन वाजी मन सूरो ।
मन में वाट श्री राम का, राम नही तन दूरो ॥26॥ 

जीवन दुर्लभ होय तो, राम नाम की टेको ।
जीवन सुगम बन जाये तो, सदा राम में देखो ॥27॥

मन मेरा मन रूप है, मन मेरा मन तीरो ।
हल्की बातें साथ नहीं, तिनका कष्ट समीरो ॥28॥

रचयिता : हरिओम शर्मा, CFA 

https://www.facebook.com/hariomsharmapoetry/photos/a.736213299820394/1140797869361933/?type=3&theater

सभी  को सत श्री  राम


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